मंगलवार, 19 जुलाई 2011

धीरसमीरे....



धीरसमीरे....
धीर-समीर-प्रकम्पित वन-कुंजो में श्री घनश्याम.
निरख रहे थे श्री राधा का स्वर्ण-वर्ण मुख, वाम.
अकस्मात् हो गया लाल, उनके कपोल का मूल.
खींच लिया था प्रिय मृग-शावक ऩे कौशेय दुकूल.


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धीर-समीर-प्रकम्पित - धीमी हवा के कारण हिलता हुआ..
कौशेय दुकूल = रेशमी दुपट्टा
मृग-शावक = हिरन का बच्चा 
स्वर्ण-वर्ण मुख = सुनहरी आभा वाला चेहरा .

श्री राधा जी का दर्शन करने वाले भक्तो ऩे अपने अनुभव बताते हुए, उनके दृश्य - अंगो का रंग,चमकते हुए सोने जैसा बताया है.


शनिवार, 16 जुलाई 2011

बहने न दो सड़को की तपिश में मेरा लहू.


बहने न दो सड़को की तपिश में मेरा लहू.
ग़र ये गरम हुआ तो फिर तुम भी न जिओगे.
हम दिख रहे अभी तुम्हे बेबस, गिरे हुए.
ग़र उठ गए,फिर,भाग के भी बच न सकोगे.

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

.कृष्णं वंदे जगद्गुरुम् :ज्ञान-सिन्धु सी आज चंद्रिका नभ में लहराएगी.



स्वयं पूर्ण जो,करूणा से जिनकी, हो पूर्ण. अपूर्ण,
मात्र स्पर्श से जिनके, तम का , पर्वत होता चूर्ण.
जिनकी ज्ञान-अग्नि से भस्मीभूत अविद्या जीर्ण.
उन गुरु के प्रकाश की सत्ता कण कण में परिकीर्ण.

उन्हीं परम गुरु का प्रकाश सविता में होता व्यक्त.
वही सजल, शीतल, शशांक किरणों में हुए विभक्त.
उन्ही परम गुरु की करूणा बहती है जह्नु-सुता में.
उनके चरणों की कोमलता हंसती पुष्प , लता में.


अम्बर की निर्मेय नीलिमा सदृश वर्ण है  उनका.
परम शान्ति के सदृश कांति-दीपित शरीर है उनका.
राग-द्वेष या अभिनिवेश का भय सत्वर मिटता है.
जो उन पर-गुरु का श्रद्धा से स्मरण आज करता है.


ज्ञान-सिन्धु सी आज चंद्रिका नभ में लहराएगी.
सकल धरा पर अक्षर किरणे, अविरल बरसाएगी.
आज परम गुरु की है आज्ञा द्विधा-ग्रस्त मानव को-
चन्द्र-किरण को बना शस्त्र, करदो समाप्त दानव को.



अरविंद पाण्डेय


अभिनिवेश=मृत्यु से भय

बुधवार, 13 जुलाई 2011

एक जाति हो, एक धर्म हो , एक हमारा वेश




तब तक ये फटेगें हमारे सीनों पे बारूद.
जब तक न फट पड़ेगें हम शैतान के सर पर.
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करते जो हिफाज़त हैं असल,उन सभी को तुम.
करते हो परेशान मुकदमे चला, चला.
रहवर जो बने हो तो फिर अब करो हिफाज़त .
वर्ना, कहो अवाम से '' नाकाम हम हुए ''
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पूर्व-सूचना देकर दिल्ली में होता विस्फोट
पहुंचाई जा रही देश को अमिट, अकल्पित चोट 


किसी धर्म ने,किसी जाति ने, किया न कभी विरोध ।
फ़िर, अफ़ज़ल के मृत्यु-दंड में है किसका अवरोध ।


भारत के जिस राज चिह्न में लिखा -"सत्य अविजेय"।
उसे पहन भी कई लोग क्यों भूल चुके हैं ध्येय ।


अबल हो रही दंड-नीति का नही जिन्हें है ध्यान ।
काल-पुरूष का न्यायालय लेगा उनका संज्ञान ।


जिसे आज वे समझ रहे हैं इस जीवन का लक्ष्य ।
नही, नही, वह लक्ष्य नही, वह तो है घृणित, अभक्ष्य ।


तुच्छ-स्वार्थ के लिए आज रख रहे परस्पर द्वेष ।
नही ध्यान है कहा जा रहा अपना भारत देश ।


शपथ लिया था देशभक्ति का, गए उसे क्यों भूल ।
क्या सोचा था, जीवन पथ में सदा मिलेंगे फूल ।


कांटो पर चलकर ही करना था पूरा कर्तव्य ।
राष्ट्र-पुरूष के मस्तक पर टीका करना था भव्य ।


करना था उन षड्यंत्रों को पल ही पल में नष्ट।
बना रहीं हैं जो युवजन को अपराधी अतिभ्रष्ट ।


किंतु आज हम सब क्यों है बस अपने में मशगूल ।
कांटो से भयभीत, सिर्फ़ क्यों खोज रहे हैं फूल ।


आज समय है- बने संगठित अपना सारा देश ।
एक जाति हो, एक धर्म हो , एक हमारा वेश ।


---अरविंद पाण्डेय

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मंगलवार, 12 जुलाई 2011

कल चन्द्र-निमंत्रण पर पहुंचा मैं चन्द्र-लोक.



कल  चन्द्र-निमंत्रण  पर पहुंचा मैं चन्द्र-लोक.
कण कण आनंदित वहां,किसी में नहीं शोक.
फिर रात हुई ,  देखा नभ में थी उदित धरा.
हलके नीले आलोक-सलिल से गगन भरा.

प्रातः जब पृथ्वी पर आनंदित मैं उतरा.
मानव के नीले कर्मो से थी भरी धरा.



सोमवार, 11 जुलाई 2011

मुक्त आज मैं, जीवन की प्रतिकूल वेदनाओं से,


हृदय बना है सेतु आज जिस पर अम्बर से आकर.
चन्द्र, सूर्य, तारक आनंदित, धरा-भ्रमण करते हैं.
मुक्त आज मैं, जीवन की प्रतिकूल वेदनाओं से,
संसीमित यह तन,असीम का अमृत-भोग करता है.

अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 9 जुलाई 2011

परम पुरुष है एक परम नारी भी है बस एक.


शिवः शक्त्या युक्तो.


परम पुरुष है एक परम नारी भी है बस एक.
नर-नारी में प्रकट हुए हैं बनकर यही अनेक.
इसीलिये,करती अभिलाषा,परम पुरुष की नारी.
नर भी उसी  परम नारी का है प्रतिपल अनुसारी.

Aravind Pandey 

शुक्रवार, 24 जून 2011

ये सेहर थम जाय,इसकी शब न आए अब कभी..



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तुझे सुना तो बहुत दूर से, मगर ये लगा.
बहुत करीब से आवाज़ कोई आई है.
किसी बिहिश्त की बहकी हुई फिजा जैसे,
या कि खिलते हुए चमन की तू रानाई है.


मैं जानता हूँ तुम नहीं हो , मगर फिर भी मैं.
तुम्हें तलाश किया करता हूँ यहाँ से वहां .
वो तुम नहीं हो जो तुम दीख रहे,फिर भी मैं, 
तुम्हें , तुम्हीं सा देखने को ढूढता हूँ यहाँ .


दश्क़ सेहरा में कभी,खो सी गयी थी जो सेहर .
मुद्दतों के बाद फ़ैलाने लगी है रोशनी. 
आओ, हम इसको भिगो दें आब-ए-उल्फत से अभी,
ये सेहर थम जाय, इसकी शब न आए अब कभी..

-- अरविंद पाण्डेय  

सोमवार, 20 जून 2011

नयन पी रहे श्री राधा जी के होठों की लाली


मंद पवन है,यमुना तट है,पुलकित हैं वनमाली.
नयन  पी रहे श्री राधा जी के होठों की लाली.
देख,देख कर उन्हें, पुलक में, वंशी मधुर बजाते.
उनको छू, जो धूल उड़ रही, माथे उसे लगाते.



गीतगोविन्दं : जयदेव 
नामसमेतं कृतसंकेतं वादयते मृदुवेणुं.
बहु मनुतेsतनु ते तनुसंगतपवनचलितमपि रेणुं ....

-- अरविंद  पाण्डेय



शनिवार, 18 जून 2011

Here, suddenly, silent sun disappeared..


Here, suddenly, silent sun disappeared,
Chirping birds astonished abruptly and feared.

Wild winds came to welcome weary woods.
And, returned to me with dusty goods.

Roaring clusters of clouds are dropping,
Dashing pellets of rain with a sound of throbbing. 

I witness, how darkness draggles and leaves the light behind,
If clumsy clusters of clouds, cover the human mind.

Aravind Pandey


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