सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

जिसका हाथ थाम मैं पीता..



जिसको  मेरे  होठ  पिएँ,
वह ही कहलाती  है हाला.

जिसका हाथ थाम मैं पीता.
वह बनती साकी बाला.

खुद  को  ही, खुद से ही पीकर, 
जिस दर मैं, मदहोश, फिरूं.

दुनिया वाले उस दर को ही 
कहते हैं यह मधुशाला.
=============
ईश्वर को परम रमणीय रमणी की रूप में देखना और स्वयं को उनका प्रेमी मानते हुए मस्त रहना--यह , विश्व के समस्त दार्शनिक प्रस्थानो को फारसी शायर संतो की  विलक्षण देन है..जिसे हृदयंगम करना, अमृत बन जाने के समान  है..एवं, जिस पर ईश्वर की प्रेमपूर्ण कृपा होती है वही इसे हृदयंगम कर पायेगा.. 


----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

Come,Be My Witness and Me, entwine


It is impossible to negate the sun in his youth.
It is impossible to suppress even tranquilled truth.
None can stand in sonorous  storm.
If a man is of integrity, None can harm.

I am Enormous Energy of the Sun,
I am the Serene Sweetness of the Moon.
All Stars Shine with the Glow of Mine.
Come, Be My Witness and Me, entwine .

-- Aravind Pandey 

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

''अस्त'' ''व्यस्त' ''आसक्त''



''अस्त'' किसी के लिए  वहीं  पर, 
किसी के लिए अतिशय ''व्यस्त''
है ''सन्यस्त'' किसी के प्रति,पर, 
किसी के लिए अति  ''आसक्त'' 

एक व्यक्ति में व्यक्त हो रहे,
एक समय ही कितने रूप.
सतत परिणमन-शील जगत में 
माया की है शक्ति अनूप. 



----अरविंद पाण्डेय

जम्हूरियत में ताज को समझो न तुम जागीर


ये सच है कि ये ताज तुम्हें दे रहा ठंडक.
सेहरा के सहर सा मगर होगा ये जल्द गर्म.

सब कुछ भुला दिया करो ,पर याद ये रखो.
देना पडेगा हर जवाब आखिरत के दिन.


अपने ही फैसले से क्यों खुरच रहे हो तुम.
चहरे पे चढ़ा है जो सफेदी का मुलम्मा.

ताकत है बेशुमार दिया जिस अवाम ने.
उसके ही बर-खिलाफ लिख रहे हो फैसले..

जम्हूरियत में ताज को समझो न तुम जागीर.
इस मुल्क में अवाम का नौकर है हर वजीर.

करते हुए भी जुर्म जब कांपें न तेरे हाथ.
बस जान लो अल्लाह का अज़ाब आ गया.

अजाज़ को माथे पे भी रखा करो कभी.
आखिर,तुम्हारा ताज भी होगा सुपुर्द-ए-खाक.
=======================

अजाज़=मिट्टी.
अज़ाब= ईश्वरीय दंड 

----अरविंद पाण्डेय

रविवार, 13 फ़रवरी 2011

O Sleep ! Come not to lotus eyes of my Queen.


O Sleep ! Come not to lotus eyes of my Queen.
I have to see in her smiling eyes, a sweet dream.

She has promised to keep you away in the Sun.
Go somewhere else, for you, here is none.

----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

हे समस्त स्वर की साम्राज्ञी !


हे समस्त स्वर की साम्राज्ञी !
हे चिन्मय श्रुति - सिन्धु. .
देवि, तुम्हारी , सजल शुभ्रता 
निर्मित करती इंदु.

शुभ्र तुम्हारा वर्ण, शुभ्र हैं 
वस्त्र , शुभ्र है हास्य.
शुभ्र हंस की शुभ्र काकली,
शुभ्र स्वरों का लास्य .

शुभ्र तुम्हारा दर्शन,भर दे 
मन में शुभ्र विचार.
शीतल हो संतप्त हृदय भी,
जैसे शुभ्र तुषार.

शुभ्र तार-सप्तक वीणा के,
शुभ्र ,स्वादु झंकार.
शुभ्र स्वरों के अभिषिन्चन से,
शुभ्र बने संसार.

शुभ्र चेतना, सुरभित चिंतन
का हो अब विस्तार .
तन-मन-धन की सब अशुभ्रता 
की हो अब से हार.

वस्त्र-मात्र ही नहीं शुभ्र हो,
अन्तर भी हो शुभ्र.
मानव की चेतना शुभ्र  हो,
ज्यों नभ नित्य निरभ्र.

शुभ्र दृष्टि हो, शुभ्र सृष्टि का 
 शुभ्र दिखे हर दृश्य.
शुभ्र सभी के अंग अंग हों,
शुभ्र सभी के स्पृश्य.

शुभ्र कर्म हों , शुभ्र चर्म  हो,
शुभ्र हमारा धर्म.
अब सबका सर्वस्व शुभ्र हो,
शुभ्र सौम्य हो मर्म.

शुभ्र काम हो, शुभ्र धाम  हो,
शुभ्र वासना, भोग..
शुभ्र प्रेयसी , प्रेयस , प्रिय  हों ,
शुभ्र रहे संयोग . 

----अरविंद पाण्डेय

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

ऐ माँ ! हैं मुझे याद वो बचपन के मेरे दिन



ऐ माँ ! हैं मुझे याद वो बचपन के मेरे दिन.
चलने की कोशिशों में जब गिरने  लगा था मैं.
नन्हें से मेरे हाथ को हर बार पकड़ कर .
गिरते हुए बचने का हुनर तूने सिखाया .



----अरविंद पाण्डेय