शुक्रवार, 27 मार्च 2009

हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी




तुम कर दो अब कल्याण,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


तुमने ही तो कृष्ण -रूप में ब्रज में रास रचाया
युगों युगों तक भक्त जनों के मन की प्यास बुझाया
शिव ही तो राधा बनकर ब्रज की धरती पर आए
इस प्यासी धरती पर मीठी रसधारा बरसाए

हम रस के प्यासे लोग, न चाहे भोग, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी


सारे ज्ञानी-जन कहते हैं तुम करुणा की सागर
फ़िर कैसे संसार बना है दुःख की जलती गागर
तुम हो स्वयं शक्ति जगजननी फ़िर ये कैसी माया
इस धरती पर पाप कहाँ से किसने है फैलाया

हे माता हर लो पीर, बंधाओ धीर ,सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी



बिना तुम्हारे शिव शंकर भी शव जैसे हो जाते
तुमसे मिलकर शिव इस जग को पल भर में उपजाते
तुमने स्वयं कालिका बनाकर मधु-कैटभ को मारा
दुःख में डूबे ब्रह्मा जी को तुमनें स्वयं उबारा

हम आए तेरे द्वार, छोड़ संसार, सुनो कल्याणी
हम शरणागत है माँ विंध्याचल -रानी
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यह गीत मेरे द्वारा लिखा गया और इसकी धुन तैयार की गयी । वीनस म्यूजिक कंपनी द्वारा इसे अन्य भक्ति गीतों के साथ २००३ में एक एलबम के रूप में रिलीज़ किया गया ।
इस गीत में शिव के श्री राधा रानी के रूप में अवतार लेने तथा महाकालिका के श्री कृष्ण के रूप में अवतार लेने के रहस्य का वर्णन है ।



----अरविंद पाण्डेय

6 टिप्‍पणियां:

  1. Jai Mata Ki, aap sab ko Navratra ki Mangalkamnaye, Maa Durga aap sab ko shukh-smridhi ke sath-sath santipurna jivan de yahi prarthna hai

    Ajit Tiwari
    www.jaimaathawewali.com

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  2. BAHOT HI BADHIYA AUR SUNDAR BHAJAN LIKHA HAI AAPNE.. BADHAAEE SWIKAREN..


    ARSH

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  3. नव संवत्सर, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें… यह नूतन वर्ष आपको सुख समृद्धि और खुशी प्रदान करे यही शुभकामनायें…

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  4. kuchh kahne se shayad is kavita ki gambhirta kam ho jayegi........main is blog par aapke orkut profile k link se aaya tha...sir main aapki sabhi kavitaon ka(jinhe main padh paya hoon) prashansak ban gaya hoon...mein filhaal B.Tech(elect.engg.,nit jamshedpur) kar raha hoon...main bhi kavitaein likhta hoon....main UPSC ki taiyari kar raha hoon aur ips hi banna chahta hoon..main bhi kavitaein likhta hoon..maine haal hi me 'naxalwaad',jo bihar-jharkhand ki ek pramukh samsya ban gayi hain,par ek kavita likhi hain...aasha hain aap bhi ise pasand karenge.. नक्सलवाद ..........
    सघन वन,पल्लव गहन ,सारे अचर निर्,
    ऊँचे पहाड़ ,नीचे झाड़ जल रहे फ़िर ,
    सुलग रहे तने ,जल रही घास है,
    सहमे प्रकृति के सीधे सरल दास हैं,
    परम रचित सुन्दरता हो रही गौण है,
    सारी सुरीली ध्वनियों ने साधा मौन हैं,
    अब बस गूंज रहे धमाके बारूद के,
    गूंज रहा इन आक्रान्ताओं का नाद हैं,


    गुनगुने धुप की तपिश की जगह
    अब चिता की ज्वाल हैं,
    थे नृत्य करते यक्छ जहाँ , कर
    रहा वहाँ तांडव काल हैं।
    सौंदर्य सारा हो रहा ख़ाक हैं,
    नदियों के नीर में लग रही आग हैं ,
    चारों तरफ़ अब आतताइयों का शोर,
    आवारा गोलियों की आवाज़ हैं,

    इनके ये कथित क्रांतिकारी सिद्धांत
    मानने को विवश निरीह नयन हो भयाक्रांत
    फ़िर भी सहमी सी करती ये सवाल हैं,
    कि जबकि ये भी यह स्वीकारते हैं
    कि विकास में सत्ता की उदासीनता के
    कारण ही हमारे रगों में आया ये उबाल हैं
    फ़िर क्यों उडाते ये स्कूल
    फ़िर क्यों उडाते ये अस्पताल हैं?



    भ्रमित कर मन भोलों के, बना शोलों से
    किसपे बरसाना चाहतें ये अंगारे हैं
    किसका ये जंगल जलता हैं , किसके
    धधकते ये पहाड़ सारे हैं?
    साहूकार लेते थे जिनसे अनाज
    दो बोरे भरकर,
    किसान देता हैं अब उनसे बचाने
    वालों को आधी फसल डर कर।
    शोषण के अंत के नाम पर
    शोषण की ऐसी अदभुत नीति


    किसी सैधांतिक ह्रदय के तो नही होसकते,
    ये तो किसी व्यावासिक मस्तिष्क के विचारे हैं...
    -अभिनव शंकर
    sir,agar aap ko meri kavita pasand aayi to pls mera orkut frnd reqst accept kar lijiye..

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  5. sir u also can visit my blog-
    http://www.antarkiaawaz.blogspot.com/

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