सोमवार, 26 जनवरी 2009

स्वर्णिम भारत निर्माण करें ..


२६ जनवरी २००९
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संयम का अविजित खड्ग लिए
विधि , संविधान का अमृत पिए

प्रज्वलित अग्नि सी प्रज्ञा हो
मणि सी संदीप्त प्रतिज्ञा हो

ऐसा भारत निर्माण करें
आओ जग में आलोक भरें


वसुधा का वैभव क्षीण न हो
मानवता शक्ति-विहीन न हो

कुसुमों में वर्ण सुगंध बढे
वृक्षों पर विकसित बेल चढ़े

शीतल सुरभित पवमान बहे
अब प्राणि -मात्र में प्रेम रहे

गौरव से मस्तक उन्नत हो
श्रद्धा से , किंतु , सदा, नत हो

करुणा से ह्रदय प्रकाशित हो
शुभ,शील,सत्य से प्रमुदित हो

जन-गण में नव-उत्साह भरे
गण-तंत्र सदा ही विजय करे

हम भारत की संतान धन्य
मानवता की महिमा अनन्य

जब भी संसार हुआ व्याकुल
जब बढ़ा धरा पर कंटक-कुल

हमने रक्षित की विश्व-शाँति
प्रज्ञा बल से की दिव्य-क्रांति


----अरविंद पाण्डेय

मंगलवार, 20 जनवरी 2009

विश्वास सर्व-व्यापक है, विभु..


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विश्वास , श्वास का प्रकृत-रूप ,
यह अन्तरतम की लय-झंकृति
स्रष्टा से इसका साम्य और
स्रष्टा की यह सुन्दरतम कृति

विश्वास, विभाजक-रेखा ,वह
जो पशु - मनुष्य में करे भेद
विश्वास-युक्त जो ,वह मनुष्य
विश्वास- हीन, पशु में अभेद

विश्वास अगर, तो अन्धकार
भी बन जाता उज्जवल प्रकाश
विश्वास अगर तो तीक्ष्ण वेदना
बन जाती उन्मुक्त हास

विश्वास अगर तो पुष्प कंटकित,
दिखता है सुरभित , सुंदर
विश्वास अगर, श्री कृष्ण-सदृश
दिखता है यह नीला अम्बर

विश्वास अगर तो केशराशि
प्रिय की प्रतीत होती सुरभित
विश्वास अगर तो क्षुद्र-देह
में भी अनंतता की प्रतीति

विश्वास
वही जब श्वास श्वास में
छलक उठे प्रिय की सुगंध
आकर्षण इतना प्रबल कि
सारे,छिन्न भिन्न हो जांय, बंध

विश्वास वही जब लैला भी
बस दिखे अप्सरा सी सुंदर
क्षण-जीवी पुरूष दिखे नारी को
कालजयी एवं ईश्वर

विश्वास वही जो धरती पर ही
रच दे स्वर्णिम स्वर्ग - सरणि
विश्वास वही जब धूमकेतु भी
हो प्रतीत ज्यों तरुण तरणि

विश्वास शक्ति, विश्वास भक्ति
विश्वास ,सर्व-सत्तामय प्रभु
विश्वास एक आराध्य देव
विश्वास सर्व-व्यापक है ,विभु


----अरविंद पाण्डेय

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

अब तो सुबह होने को है ..



वक्त की गहरी परतों में दबे हुए हमारे अतीत
और वक्त की एक एक कर उतरती परतों के बीच से
हसीन सुबह की मानिंद हमें निहारता
और अपने पुरइश्क रुखसार की झलक देने को बेताब
हमारा भविष्य
कह रहा हमसे --

कि वक्त बेपरवाह न था कभी तुमसे
तो तुम भी वक्त से न रहो बेपरवाह

कि इश्क - ए - मिजाजी में डूब कर तो देख लिया
न कुछ ले पाये किसी से, न किसी को कुछ दिया

तो अब इश्क - ए- वक्त में भी तो डूब कर देखो--
फ़िर , अपने ही किए कराए पर,
लब पर तुम्हारे, न होगी कभी आह

दिल को इतना रोशन रखो
कि तुम्हारे होते किसी ज़िंदगी की सुबह ,
न हो कभी स्याह

कि हो कोई बेसहारा
पर तुम्हारी नज़रों के सामने
न हो कभी बेराह

कि गुलशन में खिले हुए गुल
ख़ुद को न समझे कभी बेपनाह

क्योकि,
ये वक्त है हर फूल के खिलने का
ये वक्त है हर बेराह को राह मिलने का
ये वक्त है हर स्याह दिल में रोशनी दिखने का

क्योकि

अब तो सुबह होने को है
अँधेरा ख़ुद ब ख़ुद खोने को है



----अरविंद पाण्डेय

बुधवार, 7 जनवरी 2009

सारा कश्मीर हमारा है--कारगिल-युद्ध के समय लिखित





हमने समझा दोस्त उन्हें
वे दुश्मन हमें समझते हैं
नही फिक्र है उन्हें अमन की
बारम्बार उलझते हैं ।


जब जब हमने हाथ मिलाया
उनसे सरल दोस्त बनकर
तब तब उनने घात किया है
सदा पीठ पीछे हम पर ।

नही याद है उन्हें इखत्तर
का वह अमर युद्ध - संदेश
जो टकराएगा हमसे
हो जायेगा वह खंडित देश ।


क्षमा किया था हमने उनको
धूल चटाने के ही बाद
यही सोच कर कि अब उन्हें
आयेगी बुद्धि , न हों बरबाद ।


पर उनकी तो बुद्धि भ्रष्ट है
चढ़ आए फ़िर सीमा पर
फ़िर ललकार रहे हैं हमको
विगत पराजय विस्मृत कर ।


विश्व-शाँति अब रहे सुरक्षित -
यही सोच कर हम सबने
संयम से संघर्ष किया है
बलि दी हैं कितनी जानें।

न लो परीक्षा अब वर्ना,
इच्छा सुन लो यह जन जन की
मिट जाए वह झूठी रेखा
वर्षों पूर्व विभाजन की ।




सौ करोड़ कंठों ने अब यह 
घोर नाद हुंकारा है

कारगिल से गिलगित तक
सारा कश्मीर हमारा है । 

----अरविंद पाण्डेय